भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खूब खाया गया शौचालयों के ठेके में / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
खूब खाया गया शौचालयों के ठेके में
मेरे परधान ने रक्खा मुझे अँधेरे में
आइये देखिये इज़्ज़तघरों की सच्चाई
लोग लोटा लिए दौड़ें अभी भी खुल्ले में
बी डी ओ, सी डी ओ की जाँच से क्या हासिल हो
कौन है जो नहीं संलिप्त गोरखधंधे में
और दफ़्तर का वो बाबू तो दरहरामी है
मेरा दसख़त किया पुरजा है उसके क़ब्ज़े में
क्या कभी घूस कमीशन का ख़ात्मा होगा
मैंने देखा है यही हर किसी महकमे में
हर तरफ़ बह रही है भ्रष्ट नदी कचरे की
कौन बच पायेगा बेदाग़़ भला ऐसे में
जिसको भी देखिये लालच में यहाँ अंधा है
आप ही ढूँढिये ईमान किसी बंदे में