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नाज़ुक हमारा दिल था तार-तार हो गया / डी. एम. मिश्र
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नाज़ुक हमारा दिल था तार-तार हो गया
तीरेनज़र जिगर के आरपार हो गया
अब क्या सज़ा मिले उसे ईश्वर ही जानता
उल्फ़त में जो किसी की गिरफ़्तार हो गया
कोयल लगी है बोलने, ठंडी हवा चली
मौसम जो था उदास खुशगुवार हो गया
हालत हमारे दिल की क्या है ये न पूछिए
मिलने के लिए उनसे बेक़रार हो गया
बादल कहाँ से आ गये ऐसी न थी उम्मीद
मिट्टी का घरौंदा मेरा बेकार हो गया
अंज़ाम देखिएगा बेहतरीन रहेगा
आगाज़ गर हुज़ूर शानदार हो गया
सोचा नहीं था ऐसी भी होगी कभी ख़ता
नज़रें मिलीं बस उनसे और प्यार हो गया