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अपना ही घर भरने वालो डूब मरो / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
अपना ही घर भरने वालो डूब मरो
मेरे देश को ठगने वालो डूब मरो
जनता ने तो बख़्शा तख़्त व ताज तुम्हें
ताक़त पाकर तपने वालो डूब मरो
यह धरती हमने भी लहू से सींची है
हमको पराया कहने वालो डूब मरो
कोई तुमको लूट रहा तुम चुप बैठे
इस बस्ती में रहने वालो डूब मरो
जिसके जुल्मो सितम से दुनिया थर्राती
उसकी जै-जै करने वालो डूब मरो
उनका हश्र यही होगा जो नहीं सुने
अंधे कुएँ में गिरने वालो डूब मरो