भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कई दिन से तुम्हें हम याद करते हैं चली आओ / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
कई दिन से तुम्हें हम याद करते हैं चली आओ
क़सम तुमको मेरी जाँ बस अभी आओ, अभी आओ
तसल्ली भी मिले दिल को मिले इन्आम मेहनत का
जो गहनों से लदी तुम और फूलों से सजी आओ
हमारे लहलहाते खेत तुमको याद करते हैं
दिखोगी फिर जवां चूनर पहन करके नयी आओ
तुम्हारे बिन तो ये पूरा चमन वीरान लगता है
नयी शुरुआत करने के लिए बनकर कली आओ
हमारे पास जो भी ग़म है़ं वो हम सब भुला देंगे
मगर इक शर्त है मेरी कि तुम हँसती हुयी आओ