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मुझे यकीन है सूरज यहीं से निकलेगा / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
मुझे यकीन है सूरज यहीं से निकलेगा
यहीं घना है अंधेरा यहीं पे चमकेगा
इसीलिए तो खुली खिड़कियां मैं रखता हूं
बहेगी जब हवा मेरा मकान गमकेगा
मेरी जुबान पे ताले तो वो लगा सकता
करेगा क्या जो मेरा आसमान गरजेगा
तुझे वो दिख रहा मासूम परिंदा बेशक
तेरा हरेक छुपा राज़ वही खोलेगा
हमें पता है उसकी बेहिसाब ताक़त का
यदि वो गजराज है तो चींटियों से हारेगा
अभी ख़फा है नहीं बोल रहा वो मुझसे
मेरा वो प्यार है मुझको ज़रूर ढूँढेगा
यही पहचान है कुन्दन की ज़माने वालो
तपेगा आग में तो और भी वो दमकेगा