Last modified on 25 मई 2021, at 15:26

मुझे यकीन है सूरज यहीं से निकलेगा / डी. एम. मिश्र

मुझे यकीन है सूरज यहीं से निकलेगा
यहीं घना है अंधेरा यहीं पे चमकेगा

इसीलिए तो खुली खिड़कियां मैं रखता हूं
बहेगी जब हवा मेरा मकान गमकेगा

मेरी जुबान पे ताले तो वो लगा सकता
करेगा क्या जो मेरा आसमान गरजेगा

तुझे वो दिख रहा मासूम परिंदा बेशक
तेरा हरेक छुपा राज़ वही खोलेगा

हमें पता है उसकी बेहिसाब ताक़त का
यदि वो गजराज है तो चींटियों से हारेगा

अभी ख़फा है नहीं बोल रहा वो मुझसे
मेरा वो प्यार है मुझको ज़रूर ढूँढेगा

यही पहचान है कुन्दन की ज़माने वालो
तपेगा आग में तो और भी वो दमकेगा