भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दाना डाल रहा चिड़ियों को मगर शिकारी है / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
दाना डाल रहा चिड़ियों को मगर शिकारी है
आग लगाने वाला पानी का व्यापारी है
मछुआरे की नीयत खोटी तब वो समझ सकी
कँटिया में जब हाय फँसी मछली बेचारी है
लोग कबूतर बनकर खाली टुक -टुक ताक रहे
उसकी जुमलेबाजी में कितनी मक्कारी है
रंग बदलने वाली उसकी फ़ितरत भी देखी
वो गिरगिट सा मतलब से ही रखता यारी है
यारो मरने की ख़ातिर तो दहशत ही काफ़ी
मान लिया कोरोना इक घातक बीमारी है
काँटे अपने आप उगे हैं होगी बात सही
फिर भी माली की भी तो कुछ जिम्मेदारी है
उसके बारे में इससे ज़्यादा क्या और कहूँ
लोग यही बस देख रहे हैं सूरत प्यारी है