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बोलने से लोग घबराने लगे / डी. एम. मिश्र

बोलने से लोग घबराने लगे
सोचकर नुक़सान डर जाने लगे

पीठ पीछे खूब दम भरते रहे
सामने आने से कतराने लगे

कल तलक जो लोग मेरे ख़ास थे
क्या हुआ जो आज बेगाने लगे

दर्द पी जाना हमें भी आ गया
चोट खाकर हम भी मुस्काने लगे

वस्त्र, रोटी और घर सबको मिले
ख़्वाब क्या-क्या आजकल आने लगे

इस चमन में सिर्फ़ पीले फूल हों
ऐसे भी फ़रमान अब आने लगे

जिनके चेहरे पर हज़ारों दाग़ हैं
आइना लोगों को दिखलाने लगे