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अपनी खुशबू से मुअत्तर कर दे / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
अपनी खुशबू से मुअत्तर कर दे
एक अदना को मोतबर कर दे
तू ही इस कायनात का मालिक
मौला,क़तरे को समंदर कर दे
मेरी कश्ती भंवर में आयी है
तू जो चाहे तो बेख़तर कर दे
तेरे रहमो-करम पे ज़िंदा हूं
मेरा हर दर्द छूमंतर कर दे
मेरे चेहरे पे मुस्कराहट हो
जो थकन है उसे बाहर कर दे
प्यार के सामने घुटने टेके
मेरे दुश्मन को निरुत्तर कर दे
अब तो तूफ़ां का ही सहारा है
जो इधर से मुझे उधर कर दे
ये अंधेरा बड़ा भयावह है
नूर से अपने मुनव्वर कर दे