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शरीफ़ों की मैंने शराफ़त भी देखी / डी. एम. मिश्र
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शरीफ़ों की मैंने शराफ़त भी देखी
उठाया जो पर्दा जहालत भी देखी
अमीरों के पैसे की ताक़त भी देखी
मगर इन ग़रीबों की हालत भी देखी
लगी क्यों नही आग झूठी जु़बाँ को
गला घोटने की सियासत भी देखी
कहाँ आप का है वो धरना-प्रदर्शन
महज़ दो घड़ी की बग़ावत भी देखी
मेरे जैसे भी सन्त दिल हार बैठे
तेरे हुस्न में वो शरारत भी देखी
मोहब्बत जवाँ भी हुई चार दिन में
इसी चार दिन में अदावत भी देखी