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दिले हज़ीं है बहुत बेकरार सीने में / डी. एम. मिश्र

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दिले हज़ीं है बहुत बेकरार सीने में
बुला भी लो मेरे आका मुझे मदीने में

नशा चढ़ा नहीं तो क्या मज़ा है पीने में
जुनूँ नहीं तो बता क्या रखा है जीने में

सबूत क्या है तेरे पास कि तू ज़िंदा है
धधक रही न अगर आग कोई सीने में

मुझे अलग से नहीं इत्र की ज़रूरत है
मेरी मेहनत की है खुशबू मेरे पसीने में

लुका छुपी का रहे खेल खेलते बादल
झुलस रहा है बदन जून के महीने में

नहीं है ख़ैर समंदर की भी, फिर मान कहा
लगी जो आग कहीं मेरे इस सफ़ीने में