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इस चमन में अब सुकूँ मिलता नहीं / डी. एम. मिश्र
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इस चमन में अब सुकूँ मिलता नहीं
क्या कमी है, दिल मगर लगता नहीं
पेड़ हैं इतने हमारे बाग़ में
एक पत्ता भी मगर हिलता नहीं
यार कहते हो सेहत का ध्यान रक्खूँ
स्वच्छ पानी तक तो है मिलता नहीं
फूँक दे कब , कौन मेरी झोपड़ी
नींद में भी बेख़बर रहता नहीं
बेवज़ह दुनिया को समझाने चला
मेरा बेटा ही मुझे सुनता नहीं
लाख यारो मुश्किलें हों सामने
ज़ुल्म के आगे कभी झुकता नहीं
तुम भला समझोगे कब इस बात को
करने वाला करता है , कहता नहीं