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लगेगी न तुमको हमारी ख़बर तक / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
लगेगी न तुमको हमारी ख़बर तक
ज़रूरी नहीं है कि हम हों सहर तक
जिधर देखिये है ग़ज़ब का नज़ारा
उसी का है जलवा इधर से उधर तक
पिला दी है वो तूने मय आशिकी़ की
धधकने लगी आग ज़ख़्मेजिगर तक
वहाँ तो अकेले ही जाना पड़ेगा
समझते नहीं क्यों मेरे हमसफ़र तक
हिफ़ाज़त करो ख़ूब पहरे बिठाओ
बचा कौन साबित ख़ुदा के क़हर तक
दिलों में जो बसते वो मरते नहीं हैं
ये पैग़ाम पहुँचे मेरा हर बशर तक