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दंगे करा रहे हो मज़हब के नाम पर / डी. एम. मिश्र

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दंगे करा रहे हो मज़हब के नाम पर
बस्ती जला रहे हो मज़हब के नाम पर

कल तक तो बाँटते थे पैगा़म अम्न का
अब खूँ बहा रहे हो मज़हब के नाम पर

जोखू ,जु़बेर दोनों बचपन के यार हैं
दुश्मन बना रहे हो मज़हब के नाम पर

टीका भी ज़रूरी है, टोपी भी ज़रूरी
दूरी बढ़ा़ रहे हो मज़हब के नाम पर

मौला का हुक़्म क्या था यह भी नहीं है याद
नफ़रत सिखा रहे हो मज़हब के नाम पर

सब प्यार मुहब्बत की बातें भुला दिये
ताक़त दिखा रहे हो मज़हब के नाम पर