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क्यों झूठी तारीफ करें हम, क्या हम किसी के चमचे हैं / डी. एम. मिश्र

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क्यों झूठी तारीफ करें हम, क्या हम किसी के चमचे हैं
तुम नवाब हो अपने घर के, हम भी अपने घर के हैं

बाज़ारो़ में नकली चीज़ें अभी देखकर लौटे पर
हम तो सोने जैसे हैं जो आग में तपकर निखरे हैं

उम्र गुज़र जाती है लेकिन आता नहीं सयानापन
बाल पकाये धूप में होंगे अक़्ल के दुश्मन लगते हैं

आप बहुत आगे की सोचें यह तो हो सकता है पर
जिनके पीछे भाग रहे हम वो बचपन के सपने हैं

उम्मीदों ने दामन ही जब छोड़ दिये तो क्या करते
इसीलिए मजबूरी में हमने भी तेवर बदले हैं