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इतनी चोट पड़ी दिल पर डर निकल चुका / डी. एम. मिश्र
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इतनी चोट पड़ी दिल पर डर निकल चुका
अब तो पानी सर से ऊपर निकल चुका
तेरी अच्छी ख़बर वो लेगा ऐ ज़ालिम
मोटी लाठी लेकर नीमर निकल चुका
दिल्ली जाये या फिर नारे खोहे में
गाँव छोड़कर लेकिन अजगर निकल चुका
आँधी और बवंडर से अब क्या डरना
आया जो तूफ़ान दुबक कर निकल चुका
जितने रावन हैं अब उनकी खै़र नहीं
लो मेरी प्रत्यंचा से शर निकल चुका
खेत हमारा अब पूरा उपजाऊ है
अच्छा है जितना था बंजर निकल चुका