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मुश्किलें हिस्से में मेरे आ गयीं / डी. एम. मिश्र
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मुश्किलें हिस्से में मेरे आ गयीं
मैं रहा तन्हा वो मुझको पा गयीं
बिल्लियाँ भूखी थीं उनका दोष क्या
जो बची थीं रोटियाँ सब खा गयीं
बदलियों को था बरसना खेत में
क्यों अचानक छत पे मेरी आ गयीं
फिर तो उसके बाद कुछ देखा नहीं
ऐसे वो जलवे मुझे दिखला गयीं
कब कहा मेरी परेशानी हो तुम
सामने आते ही जो शरमा गयीं
रात ख़्वाबों में हसीं परियाँ दिखीं
चाँदनी की धार में नहला गयीं