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ज़ोर मुझ पर आज़माना चाहता है / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
ज़ोर मुझ पर आज़माना चाहता है
वो मेरी हस्ती मिटाना चाहता है
सर पे अपने जिसको था मैंने बिठाया
वेा मेरा मस्तक झुकाना चाहता है
रोज़ बस हिंदू-मुसलमाँ हो यहाँ पर
कौन बँटवारा कराना चाहता है
वो बड़े ही प्यार से दाने चुगाता
क्या परिंदों को फँसाना चाहता है
खुद तो रहता है हवेली में वो लेकिन
झोंपड़ी, मेरी जलाना चाहता है
इश्क़ की दीवानगी को देखकर के
हुस्न भी जलवा दिखाना चाहता है
आपकी खुशियाँ मुबारक़ आपको ही
ग़म भरा दिल मुस्कराना चाहता है