Last modified on 13 नवम्बर 2020, at 15:39

ग़मे आशिक़ी ने सँभलना सिखाया / डी. एम. मिश्र

ग़मे आशिक़ी ने सँभलना सिखाया
समंदर में गहरे उतरना सिखाया

अकेले थे पहले बहुत खुश थे लेकिन
तेरी आरज़़ू़ ने तड़पना सिखाया

बड़ी धूल थी मेरे चेहरे पे लेकिन
तेरी इक नज़र ने सँवरना सिखाया

कभी मैंने ख़ारों की परवा नहीं की
गुलों ने मुझे भी महकना सिखाया

लगी आग दिल में तो ख़ामोश रहकर
घटाओं ने मुझको बरसना सिखाया

भरोसा मुझे अपने ईमान पर है
मुझे ज़़ुल्म से जिसने लड़ना सिखाया

वो तुम हो मुझे जिसने हिम्मत अता की
सितारों के आगे निकलना सिखाया