भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उड़ी ख़बर कि शहर रोशनी में डूबा है / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उडी़ ख़बर कि शहर रोशनी में डूबा है
गया क़रीब तो देखा कि महज़ धोखा है

बडे़ घरों की खिड़कियाँ कहाँ खुलें जल्दी
जिधर भी देखता हूँ हर तरफ़ अँधेरा है

उनके कुत्ते भी दूध पी के सो गये होंगे
मगर बच्चा बग़ल का दो दिनों से भूखा है

किसी ग़रीब की इमदाद कौन है करता
ख़याल नेक है लेकिन सवाल टेढा़ है ?

मेरी ज़बान पे ताले जडे़ ज़रूर अभी
मगर नज़र में गर्म खू़न उतर आता है

वहाँ वजी़र की बातों से फूल झरते हैं
यहाँ विकास की गंगा में रेत उड़ता है

किसी को दिल की बात भी बता नहीं सकता
यहाँ पे एक शख़्स भीड़ में अकेला है