Last modified on 16 नवम्बर 2020, at 14:51

हुस्न पर बेझिझक नज़र डालो / डी. एम. मिश्र

हुस्न पर बेझिझक नज़र डालो
खूबसूरत गुनाह कर डालो

सारा मंज़र हसीन कर डालो
प्यार की फिर नज़र इधर डालो

नाम महबूब के जो ख़त लिक्खो
उसमें कुछ सुर्खिए-जिगर डालो

फिर कहो बात जो भी कहनी हो
शेर में पहले कुछ असर डालो

चोट खाने को भी तैयार रहो
ओखली में जो अपना सर डालो

उम्र भर जिसको याद करते रहो
भूल ऐसी भी कोई कर डालो