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नज़र से गिरे तो किधर जायेंगे फिर / डी. एम. मिश्र
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नज़र से गिरे तो किधर जायेंगे फिर
जनम भर दुबारा न उठ पायेंगे फिर
कमा लेंगे धन और दौलत बहुत सी
मगर ये मुहब्बत कहाँ पायेंगे फिर
हमें देखकर बंद कर लेगी खिड़की
तो कैसे गली में तेरी आयेंगे फिर
न धरती ये होगी न अंबर वो होगा
चमकते सितारे कहाँ जायेंगे फिर
हमें छोड़ दें शैाक़ से आप लेकिन
किसे अपने पहलू में बैठायेंगे फिर
यहाँ ज़ेब खाली न रुतबा न ताक़त
अमीरों की महफ़िल में क्यों आयेंगे फिर
भरोसा विखंडित अगर हो गया तो
तुम्हारी क़सम है कि मर जायेंगे फिर