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नींद में भी नज़र से गुजरे हैं / डी. एम. मिश्र

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नींद में भी नज़र से गुजरे हैं
खूबसूरत सफ़र से गुज़रे हैं

हैं जहाँ फूल और काँटे भी
एक ऐसी डगर से गुज़रे हैं

पाँव के हैं निशां अभी मिलते
कुछ मुसाफिर इधर से गुज़रे हैं

मेरे आँसू भी तू परख लेता
मोतियों के नगर से गुज़रे हैं

अपने ख़्वाबों को चूमता रहता
उनके मीठे अधर से गुज़रे हैं

देख भर ले तो बुढ़ापा भागे
उस दुआ के असर से गुज़रे हैं

कोई शै भी नज़र नहीं आती
जब से जख़्मे जिगर से गुज़रे हैं

फूल सूखे हैं ग़मज़दा मंज़र
जैसे बेवा के घर से गुज़रे हैं