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ज़हर बो कर बहुत खुश है बहुत इतरा रहा है वो / डी. एम. मिश्र

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ज़हर बो कर बहुत खुश है बहुत इतरा रहा है वो
मगर किस रास्ते पर देश को ले जा रहा है वो

बड़े ही प्यार से हिंदू मुसलमां साथ रहते हैं
अब उनके दरमियां भी नफ़रतें फैला रहा है वो

हमारी दी हुई ताक़त से मालामाल हो बैठा
हमें ही चोट पहुँचाने को बल दिखला रहा है वो

अभी थोड़ी प्रतीक्षा और करनी शेष है शायद
तुम्हें जो ठीक कर देगा यकीनन आ रहा है वो

बड़ा कमज़र्फ है तहज़ीब मैख़ाने की क्या जाने
नहीं पीना अगर आता तो क्यों छलका रहा है वो

समझ जायेंगे कल तक लोग सारे असलियत उसकी
बड़े भोले हैं वो इन्सां जिन्हें बहका रहा है वो