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जतन हज़ार किया फलसफ़ा नहीं मिलता / डी. एम. मिश्र

जतन हज़ार किया फलसफ़ा नहीं मिलता
क़दम बढ़ाता हूँ पर रास्ता नहीं मिलता

कमी नहीं है हसीनों की यूँ तो दुनिया में
मेरे हुजू़र कोई आप सा नहीं मिलता

बड़े ही प्यार से तूने किसी को चाँद कहा
तेरी नज़़र से हसीं आइना नहीं मिलता

बहुत तलाश किया दूर तक गयीं नज़रें
सितमशेयार मिले दिलरुबा नहीं मिलता

फिर बता क्यों कोई तारीफ़ करेगा दिल से
मेरे शेरों में अगर कुछ नया नहीं मिलता

समझ में आ गयी दुनिया की हक़ीक़त मुझको
हज़ार बुत हैं इक भी देवता नहीं मिलता