Last modified on 16 नवम्बर 2020, at 14:37

किसी के मौन को मुस्कान तलक ले जाये / डी. एम. मिश्र

किसी के मौन को मुस्कान तलक ले जाये
ज़मीर वो जो स्वाभिमान तलक ले जाये

मेरा वजूद दे रहा है अब आवाज़ मुझे
वही है सत्य जो ईमान तलक ले जाये

मैं गुनहगार हूँ फिर भी है इल्तिजा इतनी
मेरी अर्ज़ी वो संविधान तलक ले जाये

घमंड वो है जो हस्ती को मिटा देता है
गुरूर वो जो इम्तेहान तलक ले जाये

किसी इन्सान की पहचान तब मुकम्मल हो
कसक जो दिल में है अरमान तलक ले जाये

मेरे सपने मुझे सोने नहीं देते यारो
हसीन ख्वाब़ आसमान तलक ले जाये

उसे तलाश रहा हूँ मैं इक ज़माने से
मेरी ग़ज़ल जो बेज़ुबान तलक ले जाये