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भक्त नादान बने बैठे हैं / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
भक्त नादान बने बैठे हैं
संत भगवान बने बैठे हैं
क्या ज़माना है आ गया यारो
चोर दीवान बने बैठे हैं
देश का लुट रहा ख़़जाना है
आप दरबान बने बैठे हैं
जिनको होना था जेलखानों में
वो ही सुलतान बने बैठे हैं
कल जो नज़रें चुरा के चलते थे
अब निगहवान बने बैठे हैं
चार दिन के लिए वो आये थे
तब से मेहमान बने बैठे हैं
आप सब कुछ हैं जानते साहब
फिर भी अनजान बने बैठे हैं