भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देख लीं हमने बहुत इस देश की दुश्वारियाँ / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देख लीं हमने बहुत इस देश की दुश्वारियाँ
बोलिये कुछ बोलिये , अच्छी नहीं खा़मोशियाँ

इस समय दावत बड़े लोगों के घर में चल रहीं
कल यतीमों में बँटेगी गर बढ़ेंगी पूड़ियाँ

ढूँढ़ते संवेदनाएँ आप जंगलराज में
इक तरफ़ हैं लोग भूखे इक तरफ़ बरबादियाँ

कौन जिम्मेदार इस सबके लिए बतलाइये
जेब में जिसकी जमा इस देश की हैं चाभियाँ

एक सीमा से अधिक अन्याय सहना जुर्म है
हाथ में औज़ार लो और काट दो सब बेड़ियाँ

आस्तीनों में छुपा रखता है ख़ंजर तेज वो
लोग भेाले हैं समझ पाते नहीं मक्कारियाँ

फ़ायदे के नाम पर क़दमों में उसके आ गये
ये बतायें क्या हुईं वो आपकी खुद्दारियां