भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरे प्यार में हर सितम है गवारा / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
तेरे प्यार में हर सितम है गवारा
नहीं ग़़म है मुझको हो नुक़्सां हमारा
अभी तक सफ़र में था बिल्कुल अकेला
मगर अब किसी ने मुझे भी पुकारा
यही एक छोटी सी बस जुस्तजू है
तुम्हीं फिर मिलो गर जनम हो दुबारा
अगर तुम न होते तो मैं भी न होता
कठिन जंग में भी कभी मैं न हारा
मेरे पाँव कैसे फिसल सकते हैं जब
तेरी बाँह का मिल गया हो सहारा
प्रथम बार डर -डर के कैसे मिले थे
नहीं भूल पाता हूँ मैं वो नजा़रा
खुशी में किसी को भी साथी बना लो
ग़मों का है रिश्ता हमारा तुम्हारा