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मैं तेरी सादगी पे मरता हूँ / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
मैं तेरी सादगी पे मरता हूँ
तुझको दिल के करीब रखता हूँ
मेरी दुनिया तुझी से रंगी है
तुझ पे ही जाँ निसार करता हूँ
मैं कभी भूल न जाऊँ ख़ुद को
रोज़ गीता-कु़रान पढ़ता हूँ
ज्ञान मेरे नहीं ज़रा सा भी
सोचता हूँ जो वही कहता हूँ
मैं ज़मीं का हूँ तो जमीं पे रहूँ
आसमानों में नहीं उड़ता हूँ
आग तो दफ़्न है सीने में मगर
लब पे मुस्कान लिए फिरता हूँ
कोई दुश्मन मिला नहीं मुझको
दोस्तों का हिसाब रखता हूँ