इधर भुखमरी, उधर कोरोना दुविधा में मजदूर
बीवी, बच्चे भी हैं संग में है कितना मजबूर
सुनने वाला कौन है उसकी लेकिन करुण पुकार
भूखों मरते लोग, न पिघले सत्ता कितनी क्रूर
हम भी, तुम भी, वे भी उसकी मौत के जिम्मेदार
खाये पिये अघाये हम सब मद में अपने चूर
और किसी के मन की पीड़ा को भी तो समझें
अपने मन की बातें बाँच रहे सारे मगरूर
तीन दिनों से भूखा वो मजदूर रहा है पूछ
भैया मेरा गांव यहां से अब है कितनी दूर
देश की सब करखाने उसके दम से चलते हैं
फिर भी वो खामोश है उसका सिर्फ़ है एक क़सूर
यह उम्मीद अभी उसकी आंखों में तैर रही
उसकी रक्षा करने वाला होगा कोई ज़रूर