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एक ज़ालिम की मेहरबानी पे मैं छोड़ा गया / डी. एम. मिश्र

एक ज़ालिम की मेहरबानी पे मैं छोड़ा गया
जां से लेकर ज़िस्म तक सौ बार मैं तोड़ा गया

पहले तो मेरी ज़बाँ सिल दी गयी फिर बाद में
ठीकरा तक़दीर का सर पर मेरे फोड़ा गया

आपके दरबार में सच बोलना भी जुर्म है
बाग़ियों के साथ मेरा नाम भी जोड़ा गया

वह लुटेरा ले गया बेशक बहुत कुछ लूटकर
बच गया ईमाँ समझ लो जो गया थोड़ा गया

पंख कट जायें भले ज़िंदा पकड़ में आयें हम
तीर ऐसा जानकर मेरी तरफ़ छोड़ा गया