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अभी तक तो उसे देखा नहीं है / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
अभी तक तो उसे देखा नहीं है
मगर कैसे कहूँ झूठा नहीं है
अगर फल-फूल हैं तो पेड़ होगा
मेरा विश्वास यह थोथा नहीं है
हमारे दिल में झरने फूटते हैं
हमारा दिल कोई सहरा नहीं है
यहीं एकांत में आओ मिलें हम
यहां पर धर्म का पहरा नहीं है
मेरी सांसें अमानत हैं किसी की
पराये धन पे हक़ मेरा नहीं है
भले है खूबसूरत चांद लेकिन
किसी की आंख का तारा नहीं है
अभी तक क्या कमाया, क्या गंवाया
हमें इसका भी अंदाजा नहीं है