कर्त्तव्य च्युत दस्तावेज इतिहास की धरोहर नहीं होते / वंदना गुप्ता
गांधारी
एक युगचरित्र
पति परायणा का ख़िताब पा
स्वयं को सिद्ध किया
बस बन सकी सिर्फ
पति परायणा
मगर संपूर्ण स्त्री नहीं
नहीं बन सकी
आत्मनिर्भर कर्तव्यशील माँ
नहीं बन सकी नारी के दर्प का सूचक
बेशक तपशक्ति से पाया था अद्भुत तेज
मगर उसको भी तुमने किया निस्तेज
अधर्म का साथ देकर
नहीं पा सकीं कभी इतिहास में स्वर्णिम स्थान
जानती हो क्यों
कर्त्तव्य च्युत दस्तावेज इतिहास की धरोहर नहीं होते
मगर तुम्हारी दर्शायी राह ने
ना जाने कितनी आँखों पर पट्टी बंधवा दी
देखो तो जरा
हर गांधारी ने आँख पर पट्टी बाँध
सिर्फ तुम्हारा अनुसरण किया
मगर खुद को ना सिद्ध किया
दोषी हो तुम स्त्री की संपूर्ण जाति की
तुम्हारी बहायी गंगा में स्नान करती
स्त्रियों की पीठ पर देखना कभी
छटपटाहट के लाल-पीले निशानों से
मुक्त करने को आतुर आज की नारी
अपनी पीठ तक अपने हाथ नहीं पहुँचा पा रही
कोई दूसरा ही सहला जाता है
कुछ मरहम लगा जाता है
जिसमे आँसुओं का नमक मिला होता है
तभी व्याकुलता से मुक्ति नहीं मिल रही
जानती हो क्यों
क्योंकि उसकी सोच की जड़ को
तुमने आँख की पट्टी के मट्ठे से सींच दिया है
और जिन जड़ों में मट्ठा पड़ा होता है
वहाँ नवांकुर कब होता है
बंजर अहातों में नागफनियाँ ही उगा करती हैं
इतिहास गवाह है
तुम्हारी आँख की पट्टी ने
ना केवल तुम्हारा वंश
बल्कि पीढियां तबाह कर दीं
तभी तो देखो आज तक वो ही पौध उग रही है
जिसके बीज तुमने रोपित किये थे
कहाँ से लायीं थीं जड़ सोच के बीज
गर थोडा साहस का परिचय दिया होता
ना ही इतना रक्तपात हुआ होता
तो आज इतिहास कुछ और ही होता
तुम्हारा नाम भी स्त्रियों के इतिहास में स्वर्णिम होता
जीवन के कुरुक्षेत्र में
कितनी ही नारियां होम हो गयीं
तुम्हारा नाम लेकर
क्या उठा पाओगी उन सबके क़त्ल का बोझ
इतिहास चरित्र बनना अलग बात होती है
और इतिहास बदलना अलग
मैं इक्कीसवीं सदी की नारी भी
नकारना चाहती हूँ तुम्हें
तुम्हारे अस्तित्व को
देना चाहती हूँ तुम्हें श्राप
फिर कभी ना हो तुम्हारा जन्म
फिर किसी राजगृह में
जो फैले अवसाद की तरह
जंगल में आग की तरह
मगर तुम्हारी बिछायी नागफनियाँ
आज भी वजूद में चुभती हैं
क्योंकि गांधारी बनना आसान था और है
मगर नारी बनना ही सबसे मुश्किल है
एक संपूर्ण नारी
अपने तेज के साथ
अपने दर्प के साथ
अपने ओज के साथ