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बदलती सोच के नये अर्थ / वंदना गुप्ता
Kavita Kosh से
बदलती सोच के नये अर्थ
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रचनाकार | वंदना गुप्ता |
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इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ
प्रेम
- देखो आज मुझे मोहब्बत के हरकारे ने आवाज़ दी है / वंदना गुप्ता
- और तुम तो मेरी प्रकृति का लिखित हस्ताक्षर हो / वंदना गुप्ता
- और मुकम्मल हो गयी ज़िन्दगी / वंदना गुप्ता
- आज की मिट्टियों में ऐसे कँवल नहीं खिला करते / वंदना गुप्ता
- श्रापित मोहब्बत हो कोई और उसे मुक्तिद्वार मिल जाये / वंदना गुप्ता
- सोचती हूँ अघोरी बन जाऊँ / वंदना गुप्ता
- तुम्हारी मूक अभिव्यक्ति की मुखर पहचान हूँ मैं / वंदना गुप्ता
- यूँ अपने ही नाखूनों से अपनी ही खरोंचों को खरोंचना आसान नहीं होता / वंदना गुप्ता
- प्रेम का अंतिम लक्ष्य क्या सेक्स? / वंदना गुप्ता
- एक अधूरी कहानी का मौन पनघट / वंदना गुप्ता
- क्योंकि प्रेम को पाने की प्यास तो वहाँ भी उसी शिद्दत से कायम है जैसे तुम्हें / वंदना गुप्ता
- प्रेम कभी प्रौढ नहीं होता / वंदना गुप्ता
स्त्री विषयक
- अघायी औरतें / वंदना गुप्ता
- ॠतुस्त्राव से मीनोपाज तक का सफ़र / वंदना गुप्ता
- और कैसे कह सकते हो बहती है एक स्त्री मुझमें लहू बनकर / वंदना गुप्ता
- इतना विरोध का स्वर / वंदना गुप्ता
- और दे दिया मुझे उपनाम विनम्र अहंकारी का सोचना ज़रा / वंदना गुप्ता
- सोचना ज़रा / वंदना गुप्ता
- क्योंकि ये साहित्यिक विषय नहीं इसलिए "लेखनी वर्जित है" / वंदना गुप्ता
- भ्रम था या सत्य / वंदना गुप्ता
- मुझे साक्षात्कार देना नहीं आता / वंदना गुप्ता
- मैं नहीं जानती अपने अन्दर की उस लडकी को / वंदना गुप्ता
- कर्त्तव्य च्युत दस्तावेज इतिहास की धरोहर नहीं होते / वंदना गुप्ता
- छीजती ज़िन्दगी और मेरा संग्राम / वंदना गुप्ता
- बस मूक हूँ पीड़ा का दिग्दर्शन करके / वंदना गुप्ता
- खरोंच / वंदना गुप्ता
- शतरंज के खेल मे शह मात देना अब मैने भी सीख लिया है / वंदना गुप्ता
- और श्राप है तुम्हें मगर तब तक नहीं मिलेगा तुम्हें पूर्ण विराम / वंदना गुप्ता
- देखा है कभी राख़ को घुन लगते हुए? / वंदना गुप्ता
- नहीं है मेरी कविता का कैनवस इतना विशाल / वंदना गुप्ता
- कागज़ ही तो काले करती हो / वंदना गुप्ता
- हाँ बुरी औरत हूँ मै / वंदना गुप्ता
- मीरा होना आसान नही / वंदना गुप्ता
- आदिम पंक्ति की एक क्रांतिकारी रुकी हुयी बहस हूँ मैं / वंदना गुप्ता
सामाजिक
- इंसान और उसकी अभिव्यक्ति / वंदना गुप्ता
- खोज में हूँ अपनी प्रजाति के अस्तित्व की / वंदना गुप्ता
- तब तक गश्त पर हूँ मैं / वंदना गुप्ता
- यूँ ही नहीं आकलनों की पीठ पर फफोले होते हैं / वंदना गुप्ता
- मुझे तापमान मापना नहीं आता / वंदना गुप्ता
- क्यूँकि वक्त की लिखी तहरीरें मिटाई नहीं जा सकतीं / वंदना गुप्ता
- अपेक्षाओं के सिन्धु / वंदना गुप्ता
- क्योंकि तख्ता पलट यूँ ही नहीं हुआ करते / वंदना गुप्ता
- ये मौन के ज्वालामुखी किस टंकार के इंतज़ार में हैं? / वंदना गुप्ता
- होती है 'लाइफ़ आफ़्टर डैथ' भी / वंदना गुप्ता
- लेखन के संक्रमण काल में / वंदना गुप्ता
- क्राँति के बीज यूँ ही नहीं पोषित होते हैं / वंदना गुप्ता
- अंकुरण की संभावना हर बीज में होती है / वंदना गुप्ता
- बच्चे तो बस हो जाते हैं / वंदना गुप्ता
- सोच की रोटी पर फफ़ूँद लगने से पहले / वंदना गुप्ता
दर्शन