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क्योंकि ये साहित्यिक विषय नहीं इसलिए "लेखनी वर्जित है" / वंदना गुप्ता

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वर्जित विषय के एकाधिकार तोड
जब उसकी कलम चलती है उस विषय पर
कुछ कुंठाग्रस्त लोकोक्तियाँ उग आती हैं
खरपतवार सी
मगर आ गया है उसे अब उन्हें भी राह से हटाना
क्योंकि
विषय वर्जित हो तो क्या है
जीना तो उसे उस विषय के साथ ही है
तो क्यों ना उसका अनावरण करे
और अपने नये प्रतिमान गढे
आज की नारी की कलम
क्यों ना उन विषयों पर भी चले
और कर दिया एक दिन उसने
अनावरित अपने भेद विभेदों को
हो गयी मुखर
कर गयी अनावरित
संभोग के अनसुलझे रहस्यों को
तो कहलायी जाने लगी "बोल्ड"
मगर नहीं जानते वो ये हकीकत
रतिक्रीडा मे
पुरुष पुरुष ही होता है
क्रिया प्रतिक्रिया में ही संलिप्त होता है
मगर स्त्री तो उन क्षणों में भी
संपूर्ण समर्पण कर
एक जीवन जी लेती है
और पूर्ण तृप्त हो लेती है
उसकी तृषा न पुरुष सी बलवती होती है
जो पुनः पुनः सिर उठाती है
मगर पूर्ण संतुष्टि न पाती है
क्योंकि
वहाँ तो सिर्फ
जिस्मों का यौगिकीकरण होता है
जिसका जीवन क्षणिक होता है
और यही
स्त्री और पुरुष के साहचर्य में अंतर होता है
जो उसे सबसे अलग करता है
और इसी अंतर को कम करने के लिए
पुरुष ऐसे विषयों पर
अपना वर्चस्व कायम रखता है
और स्त्री का प्रवेश वर्जित रखता है
जो थोडा प्रयास करे
कहने की कोशिश करे
तो उसे ही कलंकित करता है
खुद को दूध धुला साबित करता है
मगर अपनी नज़रों में सत्य जानता है
अपनी कमी पहचानता है
शायद तभी इस तरह अपना पौरुष सिद्ध करता है उस स्वयंसिद्धा के आगे
क्योंकि ये साहित्यिक विषय नही
इसलिए
"लेखनी वर्जित है" का टैग सिर्फ स्त्री के लिए ही होता है!!!