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हाँ बुरी औरत हूँ मै / वंदना गुप्ता

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हाँ... बुरी औरत हूँ मैं
मानती हूँ...
क्यूँकि जान गयी हूँ
अपनी तरह
अपनी शर्तों पर जीना
नहीं करती अब तुम्हारी बेगारी
दे देती हूँ तुम्हारी हर ग़लत बात का जवाब
नहीं मानती आँख मूँद कर तुम्हारी हर बात
सिर्फ तुम्हारे लिए ही जीना
बदल लिया है अब इस वाक्य को खुद से
अब अपनी इच्छाओं का दमन नहीं करती
प्रत्युत्तर देती हूँ
समाज के अवांछित भय से नहीं डरती हूँ
तुम्हारी सदियों से बनाई परिपाटियों को तोडती हूँ
तुमसे भी वह ही उम्मीद करती हूँ
उतना ही समर्पण, त्याग, मोहब्बत चाहती हूँ
जितना मैं शिद्दत से करती हूँ
तो आज मैं तुम्हें बुरी लगती हूँ
आखिर कैसे जमींदोज़ आत्माएँ कब्र से बाहर आ गयीं
अगर सत्य कहना बुरा है
अगर खुद को पहचानना बुरा है
अगर हर नाजायज को ठुकराना बुरा है
तो हाँ... मैं बुरी औरत हूँ