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मैं नहीं जानती अपने अन्दर की उस लडकी को / वंदना गुप्ता

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मैं नहीं जानती
अपने अन्दर की
उस लडकी को
जो आहटों के गुलाब उगाया करती है

मैं नहीं जानती
अपने अन्दर की
उस लडकी को
जो काफ़ी के कबाब बनाया करती है

मैं नहीं जानती
अपने अन्दर की
उस लडकी को
जो मोहब्बत के सीने पर जलता चाँद उगाया करती है

मैं नहीं जानती
अपने अन्दर की
उस लडकी को
जो तुम्हारे ना होने पर तुम्हारा होना दिखाया करती है

मैं नहीं जानती
अपने अन्दर की
उस लडकी को
जो कांच की पारदर्शिता पर सुनहरी धूप दिखाया करती है

मैं नहीं जानती
अपने अन्दर की
उस लडकी को
जो चटक खिले रंगों से विरह के गीत बनाया करती है

मैं नहीं जानती
अपने अन्दर की
उस लडकी को
जो सांझ के पाँव में भोर का तारा पहनाया करती है

मैं नहीं जानती
अपने अन्दर की
उस लडकी को
जो प्रेम में इंतिहायी डूबकर खुद प्रेमी हो जाया करती है

मैं नहीं जानती
अपने अन्दर की
उस लडकी को
जो खुद को मिटाकर रोज अलाव जलाया करती है

मैं नहीं जानती
अपने अन्दर की
उस लडकी को
जो जलते सूरज की पीठ पर बासी रोटी बनाया करती है

नहीं जानती
नहीं जानती
नहीं जानती
सुना है तीन बार जो कह दिया जाये
वो अटल सत्य गिना जाता है क्या सच में नहीं जानती?
मानोगे मेरी इस बात को सच?
हो सके तो बताना ओ मेरे अल्हड स्वप्न सलोने
जो आज भी ख्वाबों में अंगडाइयाँ लिया करता है बिना किसी ज़ुम्बिश के!!!
"तारों में सज के अपने प्रीतम से
देखो धरती चली मिलने"
गुनगुनाने को जी चाहता है मेरे अन्दर की लडकी का
अब ये तुम पर है किसे सच मानते हो?
जो पहले कहा या जो बाद में सोच और ख्याल तो अपने अपने होते हैं ना
और मैं ना सोच हूँ ना ख्याल
बस जानने को हूँ बेकरार क्या जानती हूँ और क्या नहीं?
ये प्रीत के मनके इतने टेढे मेढे क्यों होते हैं मेरी जिजीविषा की तरह,
मेरी प्रतीक्षा की तरह,मेरी आतुरता की तरह
वक्त मिला तो कभी जप के हम भी देखेंगे
शायद सुमिरनी का मोती बन जायें
अल्हड लडकी की ख्वाहिशों में
चाहतों की शराब की दो बूँद काफ़ी है नीट पीने के लिये
ज़िन्दगी के लिये ज़िन्दगी रहने तक
ओ साकी! क्या देगा मेरी मिट चुकी आरज़ुओं को जिलाने के लिये अपने अमृत घट से एक जाम
फिर कभी होश में ना आने के लिये
मेरे पाँव थिरकाने के लिये, मेरे मिट जाने के लिये
क्योंकि
मैं नहीं जानती
अपने अन्दर की
उस लडकी को
कि आखिर उसका आखिरी विज़न क्या है