कहीं मैं गुंचा हूँ वशूद से अपने खुद परीशां हूँ / ज़फ़र
कहीं मैं गुंचा हूँ, वाशुद से अपने ख़ुद परीशां हूँ
कहीं गौहर हूँ, अपनी मौज़ में मैं आप ग़लतां हूँ
कहीं मैं साग़रे-गुल हूँ, कहीं मैं शीशा-ए-मुल हूँ
कहीं मैं शोरे-कुलकुल हूँ, कहीं मैं शोरे-मसतां हूँ
कहीं मैं जोशे-वहश्त हूँ, कहीं मैं महवे-हैरत हूँ
कहीं मैं आबे-रहमत हूँ, कहीं मैं दाग़े-असीयां हूँ
कहीं मैं बर्के-ख़िरमन हूँ, कहीं मैं अब्रे-गुलशन हूँ
कहीं मैं अशके-दामन हूँ, कहीं मैं चशमे-गिरीयां हूँ
कहीं मैं अक्ले-आरा हूँ, कहीं मजनूने-रुसवां हूँ
कहीं मैं पीरे-दाना हूँ, कहीं मैं तिफ़ले-नादां हूँ
कहीं मैं दस्ते-कातिल हूँ, कहीं मैं हलके-बिस्मिल हूँ
कहीं मैं ज़हरे-हलाहल हूँ, कहीं मैं आबे-हैवां हूँ
कहीं मैं सवरे-मौज़ूं हूँ, कहीं मैं बैदे-मजनूं हूँ
कहीं गुल हूँ 'ज़फ़र' मैं, और कहीं ख़ारे-बियाबां हूँ