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ज़फ़र की शायरी / बहादुर शाह ज़फ़र
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ज़फ़र की शायरी
रचनाकार | बहादुर शाह ज़फ़र |
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प्रकाशक | मनोज पब्लिकेशन, 761, मेन रोड बुराड़ी, दिल्ली |
वर्ष | तृतीय संस्करण-2007 |
भाषा | हिंदी |
विषय | |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 192 |
ISBN | 978-81-8133-182-3 |
विविध | यह साजन पेशावरी जी के द्वारा किया गया संकलन है |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दायर में / ज़फ़र
- रविश-ए-गुल कहाँ यार हँसाने वाले / ज़फ़र
- ऐश से गुज़री कि ग़म के साथ अच्छी निभ गई / ज़फ़र
- या मुझे अफ़सर-ए-शाहाना बनाया होता / ज़फ़र
- शब हाथ हमारे जो मय-ए-नाब न आई / ज़फ़र
- जलाया आप हमने ज़ब्त कर कर आह-ए-सोज़ाँ को / ज़फ़र
- इक दम में ज़र्ब-ए-नाला से पत्थर को तोड़ दूं / ज़फ़र
- हवा में फिरते हो हिर्स-ओ-हूँ-हा के लिए / ज़फ़र
- रात भर मुझको ग़म-ए-यार ने सोने न दिया/ ज़फ़र
- डाले हुए गर्दन जो मेरा नामाबर आया / ज़फ़र
- रखता है मुहब्बत दिल-ए-नाशाद तुम्हारी / ज़फ़र
- दिल की मेहमाँ सारे खाली है / ज़फ़र
- जिस जगह हम हों वहां गर तू न हो तो कुछ नहीं / ज़फ़र
- कहीं मैं गुंचा हूँ वशूद से अपने खुद परीशां हूँ / ज़फ़र
- होते-होते चश्म से आज अश्कबारी रह गई / ज़फ़र
- हुए वाक़िफ़ न जो दुनिया के ग़म से वो ही अच्छे हैं / ज़फ़र
- गरचे गर्क-ए-अश्क-तर है गिरिया की शिद्दत में शमा / ज़फ़र
- न तो कुछ कुफ़्र है न दीं कुछ है / ज़फ़र
- कब हुजूम-ए-ग़म से मेरी जान घबराती नहीं / ज़फ़र
- उस निगाह-ए-मस्त के मस्तों की मस्ती और है / ज़फ़र
- लाख चाहत को छिपाए कोई पर छिपती नहीं / ज़फ़र
- हमारी चश्म रही अश्कबार बरसों तक / ज़फ़र