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ऐश से गुज़री कि ग़म के साथ अच्छी निभ गई / ज़फ़र
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ऐश से गुजरी कि गम के साथ, अच्छी निभ गई
निभ गई जो उस सनम के साथ, अच्छी निभ गई
दोस्ती उस दुश्मने-जां ने निबाही तो सही
जो निभी जुल्मो-सितम के साथ, अच्छी निभ गई
खूब गुजरी गरचे औरों की निशातो-ऐश<ref>आराम</ref> में
अपनी भी रंजो-अलम के साथ, अच्छी निभ गई
हमको था मंजूर अपनी खाकसारी<ref>नम्रता</ref> का निबाह
बारे<ref>अन्त में</ref> उस खाके-कदम के साथ, अच्छी निभ गई
जो जुबां पर उसकी आया, लब पे नक्श उसने किया
लोह<ref>तख्ती</ref> की सोहबत कलम के साथ अच्छी निभ गई
बू-ए-गूल क्या रह के करती, गुल ने रहकर क्या किया
वह नसीमे-सुबह-दम<ref>सुबह की हवा</ref> के साथ, अच्छी निभ गई
शुक्र-सद-शुक्र अपने मुंह से जो निकाली मैंने बात
ऐ ‘जफर’, उसके करम के साथ, अच्छी निभ गई
शब्दार्थ
<references/>