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रात भर मुझको ग़म-ए-यार ने सोने न दिया/ ज़फ़र

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रात भर मुझको गम-ए-यार ने सोने न दिया
सुबह को खौफे शबे तार न सोने न दिया

शम्अ की तरह मुझे रात कटी सूली पर
चैन से यादे कदे यार ने सोने न दिया

यह कराहा दर्द के साथ तेरा बीमार-ए-अलम
किसी हमसायें को बीमार ने सोने न दिया

ए दिल-ए-जार तु सोया किया आराम से रात
मुझे पल भर भी दिल-ए-जार सोने न दिया

सोऊं मैं क्या कि मेरे पांव को भी जिन्दां में
आरजू-ए-खलिश-ए-यार ने सोने न दिया

यासो-गम रंजो-ताअब मेरे हुए दुश्मने-जां
ऐ जफर, शब इन्हीं दो-चार ने सोने ना दिया