इक दम में ज़र्ब-ए-नाला से पत्थर को तोड़ दूं / ज़फ़र
इक दम में जर्बे-नाला<ref>रूदन की चोट</ref> से पत्थर को तोड़ दूं
पत्थर तो क्या, किसी सद्दे-सिकन्दर<ref>सिकन्दर का गर्व</ref> को तोड़ दूं
खूने-जिगर से लाल का भी मोल दूं बहा
गर आंसुओं से कीमते-गौहर<ref>सिकन्दर का गर्व</ref> को तोड़ दूं
दीवाना होके तेरा कहे साफ आईना
जंजीरो-तौको<ref>मोती</ref>-हलका-ए-जौहर<ref>हार</ref> को तोड़ दूं
क्या दुश्मनी है अहले-करम<ref>दानी लोग</ref> से कहे है चर्ख<ref>आकाश</ref>
यां तक झुकाऊं शाख समरवर<ref>फलों से लदी शाखें</ref> को तोड़ दूं
तोड़ा दिल उस सनम ने, न आया उसे ख्याल
है घर खुदा का, क्योंकि मैं इस घर को तोड़ दूं
लाचार हूं तेरी सफे-मिजगां<ref>पलकों की पंक्ति</ref> से वरना यार
वह सफ-शिकन<ref>पंक्ति तोड़ने वाला</ref> हूं मैं, सफे-लश्कर<ref>फौज</ref> को तोड़ दूं