भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कार - कोठियाँ बँगले - शँगले / रामकुमार कृषक
Kavita Kosh से
कार - कोठियाँ, बँगले - शँगले
अपने नाम लिखें
जैसे भी हो
बड़ों सरीखे हम भी बड़े दिखें !
सही - साँझ
बोतलें - मुर्ग़ियाँ
करते हुए ज़िबह
अँगरेज़ी - अख़बार जीभ से
चाटें सुबह - सुबह,
संग चुस्किया कॉफ़ी - शाफ़ी
कुछ नमकीन चखें !
चन्दा - सूरज
धरती घूमें
बैठे स्वयं रहें
करें उल्टियाँ अन्धेरों की
लोग प्रकाश कहें,
बैंक भरें लॉकर - शाकर से
ऊँचा माथ रखें !
4 जून 1975