किसान की मुसीबत नैं जाणै सै किसान / धनपत सिंह
किसान की मुसीबत नैं जाणै सै किसान
लूट-खसोट मचावणियां तूं के जाणै बेईमान
माह, पोह के पाळे म्हं भी लाणा पाणी हो
दिन रात रहे, जा बंध पै कस्सी बजाणी हो
गिरड़ी फेरां, सुहागी, कई बै बहाहणी हो
पाच्छै बीज गेरया जा, आशा हर तैं लाणी हो
छोट-छोटे पौधे उपजैं जमींदार की ज्यान
इन पौध्यां नैं अपणे खून की खुबकाई दे
ऊंची-ऊंची बाड़ करै और खोद खाई दे
म्हारे खून के कतरे के दाणे बणे दिखाई दे
उन दाण्यां नैं तूं लेज्या हम माल उघाई दे
जमींदार की मौत होया करै चौगुणा लगान
किसान के दुश्मन गिणाऊं सुन्ने, डांगर, ढोर
कतरा, मकड़ा, काबर, घुग्गी, काग मचावै शोर
टीड्डी, कड़का, गादड़ लोबा, सूरों तक का जोर
तोता सिरडी काट कै लेज्या, कोर चूंटज्या मोर
गोलिए और चिड़िया चुगज्यां, चरज्यां मिरग मैदान
कहै धनपत सिंह तनैं किसान सताए बदमाशी पूरी सै
अंत को ज्वाल क है सै मिलै जरूरी सै
म्हारा खून पसीना बंद करकै तनैं भरी तजूरी सै
ल्या उन बंदयां नैं बांटू या जिसकी मजदूरी सै
तूं खटरस, मिठरस, शराब, कवाब खा, भूक्खा मरै जिहान