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कीर्ति-कुञ्क्षिकी कीर्ति जगत में / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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कीर्ति-कुक्षि की कीर्ति जगत में अनुपमेय, नहिं तुलना और।
प्रकट हुर्ईं जिस से माधव की प्रिया नित्य, सब की सिर-मौर॥
नहीं जगत में कहीं किसी का यश वृषभानु नरेश-समान।
पिता बने राधा के, जिनके रति-परतन्त्र स्वयं भगवान॥
धरा हुई वह धन्य, हुआ महिमान्वित छोटा रावल ग्राम।
प्रकटी जहाँ राधिका रानी सच्चित्-सुखमय की सुख-धाम॥
धन्य सूर्य-शशि, धन्य पुण्य वे अनल, अनिल, शुचि जल, आकाश।
देखा भाग्यवान जिन सबने राधा का प्राकट्य-विकास॥
धन्य मनुष्य, धन्य पशु-पक्षी, तिर्यक् सारे, कीट-पतंग।
देखा श्याम-सुखद राधा का कभी जिन्होंने कोई अंग॥
धन्य आज हम, जो कर पाये श्याम-स्वामिनी के गुण-गान।
धन्य सुन रहे, मिला रहे जो इन गीतों में अपनी तान॥