भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुत्ते और आदमी / ब्रजेश कृष्ण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

महाभारत में ऐसा कोई प्रसंग नहीं
कि काटा हो युधिष्ठिर के कुत्ते ने
किसी आदमी को

हमारे वक़्त के
रायबहादुर कुत्तों की बात अलग है
वे अपने मालिकों से सीखते हैं सभी कुछ
और काटने दौड़ते हैं हर समय
हर किसी को अपने मालिक की तरह

मैं दूर रहता हूँ इन कुत्तों
और इनके मालिकों से

बात यहाँ उन कुत्तों की है
जो किसी भी गली के मुहाने पर
आराम से लेटे/अधलेटे/खेलते
या खाने की तलाश में
घूमते हुए मिल जाते हैं

वे नहीं काटना चाहते आदमी को
वे काटते ही तब हैं
जब उन्हें
आदमी की हरक़त का हावभाव में
दिखाई देता है कोई कुत्तापन

कभी-कभी ग़लती भी होती है उनसे
या फिर अकारण कोई डर या खीझ
कि वे एक सीधे-सच्चे आदमी को
यहाँ तक कि किसी बच्चे को काट लेते हैं

लेकिन ग़लती किससे नहीं होती
अब यही देखें कि
हम लाख छिपाना चाहें अपना कुत्तापन
लेकिन वह उजागर हो ही जाता है
हमारी किसी न किसी ग़लती से।