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केवल दिलासा नहीं / शरद कोकास

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अपने भय मुझे दे दो
और निर्भय हो जाओ
डर के काले डैनों की जड़ों से काटकर
मैं एक भयहीन दुनिया बनाऊँगा

अपनी चिंताएँ मुझे दे दो
चिंताओं को भस्म कर दूँगा चिता में
अंतरिक्ष में विलीन कर दूँगा

अपने दुख मुझे दे दो
दुखों के मीलों लम्बे मरुस्थल में
कहीं हरियाली की तरह
उगने की कोशिश करूँगा

अपनी परेशानियाँ मुझे दे दो
उन्हें किसी डोर से बाँधकर
पतंग बना उड़ा दूँगा आसमान में
वे कट कर कहीं भटक जाएँगी

अपना साथ मुझे दे दो
अस्तित्व बनाए रखने के
इस कठिन दौर में
इन्हीं सब इंतज़ामात के साथ
हम हौसला रखेंगे
एक दूसरे के लिए।

-1998