भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैप्टन कुक की कथा / शरद कोकास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह पानी पर चलता था
और सपनों में पांव रखने के लिए ज़मीन तलाशता था
बुलन्दी के आसमान में जहाँ
पहले ही कई मशहूर सितारों के नाम टंगे थे
अपने नाम का एक सितारा जड़ना चाहता था वह

परम्परा से उसने हौसला लिया
जाति से लिया स्वाभिमान
और समन्दर के हवाले कर दी अपनी नाव
किस्मत और लहरें और हवाएँ
उसे कहाँ ले जाएँगी वह ख़ुद नहीं जानता था

पानी पर कोई तयशुदा रास्ता नहीं था
और सितारे अस्त हो जाते थे दिन निकलते ही
कु़तुबनामे की सुई थी उसकी विश्वसनीय साथी
दूरबीन से भी आगे देखती थीं उसकी आँखें
दसों दिशाओं की टोह लेती थीं

उसकी थकान में सर उठाते थे तूफान
वहीं पंछियों को देख चहक उठता वह
बच्चों सा खेलता कुदरत की भूलभुलैया में
वह जानता था उसकी नाव का लंगर
तय करेगा दुनिया का नया मानचित्र

शंख सीपियों के बीच मनुष्य मिले उसे रेत में
जो पेड़ों के इर्द-गिर्द रहते थे
और मनुष्यों की तरह ही थे शक्लो-सूरत में
उनकी भूख में शामिल की उसने अपनी भूख
उनके चेहरे पर चिपका अजनबीपन
डिब्बाबन्द भोजन और सिगरेटों के बदले ख़रीद लिया
फिर उनके ज़मीर पर अपने देश का झंडा गाड़कर
चल पड़ा वह एक नई ज़मीन रौंदने

अगले पड़ाव पर जिस कबीले में वह पहुँचा
कबीले की तरह ही था वह कबीला
जिसकी आँखों में स्वर्ग से आनेवाले किसी देवता की प्रतीक्षा ािी
जो अपने खुरदुरेपन में जीते लोगों के लिए
उपहार में मखमली ख़्वाब लेकर आनेवाला था

ठीक देवता की तरह था उसका प्रवेश
और वह अपने प्राकट्य में मनुष्य था
मोह लोभ लालसा से घिरा हुआ
सामर्थ्य की सीमाओं से बन्धा हुआ
वरदान की शक्ति से सर्वथा वंचित
स्वयं चमत्कारों के फेर में पड़ा हुआ
देवता की तरह गोचर होने के बावजूद
वह उनकी कल्पना का देवता नहीं था
नक्शे में उनका नाम दर्ज करने की कीमत भी इस बार
चन्द सिगरेट और मोती के हार नहीं उसकी जान थी

मनुष्य के द्वारा मनुष्य की हत्या की तरह
अनभिज्ञता के हाथों सभ्यता का मारा जाना
अस्वाभाविक नहीं था उस आदिम संस्कृति में
यह क्षमता और अपेक्षा के द्वन्द्व की शुरुआत थी

बस इतनी सी कथा है कैप्टन कुक की
कि चालीस बरस लहरों पर डोलता रहा उसका अदम्य साहस
ओबामा, बुश, ब्लेयर, क्लाईव का वह परदादा था
अविकसित सभ्यताओं पर जीत के लिए
मुक़र्रर ईनाम था
राष्ट्रीय नायकों की सूची में उसका नाम

नमकहलाली का पर्यायवाची वह नाम
अब आटे और नमक के पैकेटों पर सवार होकर
निकला है विकासशील सभ्यताओं को जीतने।

-2002