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कैसे न करता उसकी मैं गारंटी पे विश्वास / डी. एम. मिश्र

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कैसे न करता उसकी मैं गारंटी पे विश्वास
माना मुझे पहले ही हक़ीक़त का था एहसास

गारंटी का मतलब है कहीं दाल में कुछ काला
जुमले पे यकीं कर लिया क्यों तूने धरमदास

मैंने भी किस इंसान को पल्लू से लिया बांध
देता है जो धोखा क़दम -क़दम पे बन के ख़ास

भूले से भी उस शख़्स पे करना न ऐतबार
फ़ितरत से दगाबाज जो हरकत से हो बिंदास

काँटे की तरह दिल में मेरे है चुभी ये बात
हमदर्द बन के करता ग़रीबों का वो उपहास

मैं भी बनूँ नेता बड़ा सोचा तो कई बार
पर , झूठ बोलने का मुझे था नहीं अभ्यास

मेरी मुहब्बतों का सिला तूने दिया खूब
सपने बिखर गये हैं मेरे टूट गयी आस