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सच कहना यूँ अंगारों पर चलना होता है / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
सच कहना यूँ अंगारों पर चलना होता है
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रचनाकार | डी. एम. मिश्र |
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प्रकाशक | श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली |
वर्ष | 2025 |
भाषा | हिंदी |
विषय | ग़ज़ल संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 120 |
ISBN | 978-93-49136-88-5 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
रचनाएँ
- भूमिका / सच कहना यूँ अंगारों पर चलना होता है
- सोचता हूँ प्यास ये कैसे बुझाऊँ / डी. एम. मिश्र
- अपनी मंज़िल का पता सबसे पूछते आये / डी. एम. मिश्र
- काट दो तो और कल्ले फूटते हैं / डी. एम. मिश्र
- आस्तीनों में पलेंगे साँप / डी. एम. मिश्र
- रात है पूस की और कपड़े नहीं / डी. एम. मिश्र
- जिनके घर में दौलत की वर्षा होती / डी. एम. मिश्र
- अदब नवाज़ कोई है, कोई सिकंदर है / डी. एम. मिश्र
- जिसको भी देखिए परेशान नज़र आता है / डी. एम. मिश्र
- शहर ये जले तो जले लोग चुप हैं / डी. एम. मिश्र
- जो रो नहीं सकता है वो गा भी नहीं सकता / डी. एम. मिश्र
- जलेगा चमन तो धुआँ भी उठेगा / डी. एम. मिश्र
- हर किसी से मैं पराजित ही रहा / डी. एम. मिश्र
- सच्चाई की सिर्फ़ वकालत करता हूँ / डी. एम. मिश्र
- तुम हो तो संसार सुहाना लगता है / डी. एम. मिश्र
- बात सच्ची थी तो मैं भी अड़ गया / डी. एम. मिश्र
- नफ़रती इंसान से नाता नहीं / डी. एम. मिश्र
- ये हमारे दौर की उपलब्धियाँ / डी. एम. मिश्र
- समझ रहे हम भी उसकी चतुराई को / डी. एम. मिश्र
- हादसों के नगर में चले जा रहे / डी. एम. मिश्र
- पत्थरों से तो सर बचा आये / डी. एम. मिश्र
- सच कहना यूँ अंगारों पर चलना होता है (ग़ज़ल) / डी. एम. मिश्र
- जो हुआ सो हुआ छोड़ दो सोचना / डी. एम. मिश्र
- अगर क़लम में धार नहीं तो क्या मतलब / डी. एम. मिश्र
- जो तुझे भूल गए तू भी उन्हें याद न कर / डी. एम. मिश्र
- खाये पिये अघाये लोग / डी. एम. मिश्र
- सफ़र में ये होता है हैरां नहीं हूँ / डी. एम. मिश्र
- मैदान में डटे हो तो दमखम तो दिखा लो / डी. एम. मिश्र
- मुहब्बत न होती तो क्यों याद करता / डी. एम. मिश्र
- क्या - क्या नहीं बाज़ार में इस बार बिक गया / डी. एम. मिश्र
- धरती पे रहूँ तो मुझे आधार चाहिए / डी. एम. मिश्र
- जो है सबको पता वो छुपाने चले / डी. एम. मिश्र
- सत्ता के लोभ ने उसे पागल बना दिया / डी. एम. मिश्र
- सब सियासी दाँव उल्टे पड़ गये / डी. एम. मिश्र
- उसके माथे पर तो कुछ लिक्खा न था / डी. एम. मिश्र
- कैसे न करता उसकी मैं गारंटी पे विश्वास / डी. एम. मिश्र
- सुना है मगर ये हक़ीक़त नहीं है / डी. एम. मिश्र
- हसीं हो यार इतना ही नहीं वो बावफ़ा भी हो / डी. एम. मिश्र
- कल को भूलो आज में जीकर दिखाओ / डी. एम. मिश्र
- कैसे निजात पायें आतंकवाद से / डी. एम. मिश्र
- चूहेदानी में जो रोटी रखता है / डी. एम. मिश्र
- सबके चेहरे पर हँसी - मुस्कान लाती कामवाली / डी. एम. मिश्र
- आप तो ग़ैरों को बेशक जीत लेंगे / डी. एम. मिश्र
- क़दम आगे बढ़ाकर फिर कभी पीछे नहीं हटता / डी. एम. मिश्र
- जिसे नूरे नज़र समझा था वो आँखों का धोखा था / डी. एम. मिश्र
- आज वो मेरे घर आये हैं / डी. एम. मिश्र
- जीना भी है स्वीकार नहीं / डी. एम. मिश्र
- बाहर वालों से अब ख़तरा नहीं रहा / डी. एम. मिश्र
- दिल बचा ही कहाँ आप तोड़ेंगे जो / डी. एम. मिश्र
- नाम ईनाम की ख़्वाहिश न दिल में रखते हैं / डी. एम. मिश्र
- कई मुश्किलें हैं, बढ़ी बेबसी है / डी. एम. मिश्र
- बाज़ के डर से आसमां नहीं छोड़ा जाता / डी. एम. मिश्र
- फूल से पाँव में चुभे कांटे / डी. एम. मिश्र
- बादशाहत से तेरी मैं न कभी डरता हूँ / डी. एम. मिश्र
- माना मुसीबतों के, काँटे बिछे डगर में / डी. एम. मिश्र
- कलई उतर गई हुआ नंगा समाजवाद / डी. एम. मिश्र
- मुझको भी कोई पढ़े कल क्या पता / डी. एम. मिश्र
- जीवन की गहराई मैंने मापी है / डी. एम. मिश्र
- भले सम्बन्ध आपसे न कोई रखते हैं / डी. एम. मिश्र
- जुल्मो सितम का सामना करना पड़ा / डी. एम. मिश्र
- ऐ बड़ी मछली कभी छोटी थी तू भी / डी. एम. मिश्र
- स्वयं की थाल व्यंजनों से सजाया उसने / डी. एम. मिश्र
- कौन इस संसार में बेदाग़ है / डी. एम. मिश्र
- ज़माने से औरत सतायी हुई है / डी. एम. मिश्र
- कट रही है ज़िन्दगी फुटपाथ पर / डी. एम. मिश्र
- बेदाग़ है वो क़ातिल इंसाफ़ की नज़र में / डी. एम. मिश्र
- हाल अच्छा बुरा सब भुला दीजिये / डी. एम. मिश्र
- अपना तेवर सँभाल कर रक्खो / डी. एम. मिश्र
- औरत को खिलौना मत समझो, छू ले तो तेज़ कटारी है / डी. एम. मिश्र
- बंद कर देना बहुत आसान है / डी. एम. मिश्र
- बंद कर देना बहुत आसान है / डी. एम. मिश्र
- गुनाहों से पर्दा कभी तो उठेगा / डी. एम. मिश्र
- आजकल दिल में अचानक से दर्द होता है / डी. एम. मिश्र
- तेज़ आँधी भी नहीं वो झेल पाते / डी. एम. मिश्र
- कहने को औरत आधी आबादी है / डी. एम. मिश्र
- हमको मालूम है वो क्या यहाँ करने आये / डी. एम. मिश्र
- अपने ही घर में कोई मुझे जानता नहीं / डी. एम. मिश्र
- परचम उठा लो हाथ में अब इन्क़लाब का / डी. एम. मिश्र
- और कितना जलें रोशनी के लिए / डी. एम. मिश्र
- खेत को और कोई जोतने वाला होगा / डी. एम. मिश्र
- मुझे छोड़कर के गये हो अधर में / डी. एम. मिश्र
- इंसाफ़ हो सही कि ग़लत पूछते नहीं / डी. एम. मिश्र
- सब सहन करता है अच्छा आदमी / डी. एम. मिश्र
- दुख उसे इस बात का है ढह गयी दीवार / डी. एम. मिश्र
- हमने समझा आप ही सबसे बड़े हैं / डी. एम. मिश्र
- ग़ज़ल, ग़ज़ल है न उर्दू है ये न हिंदी है / डी. एम. मिश्र
- छोटी ही सही लेकिन अच्छी सी ज़िन्दगी हो / डी. एम. मिश्र
- कैसे पहचानें कौन शख़्स जेबकतरा है / डी. एम. मिश्र
- वो हसीं है बहुत सोचिए ही नहीं / डी. एम. मिश्र
- मेरा राजा बड़ा ज़िद्दी मेरी सुनता नहीं कुछ भी / डी. एम. मिश्र
- मैं हिन्दू था ग़ज़ल ने मुझको इंसां बना दिया / डी. एम. मिश्र
- मेरी तलाश है वो रास्ता मिले मुझको / डी. एम. मिश्र
- गाँव से कब दूर जा पाता हूँ मैं / डी. एम. मिश्र
- रक्त का संचार है पर्यावरण / डी. एम. मिश्र
- बचपन में छुट्टी के दिन इस तरह बिताता था / डी. एम. मिश्र
- नहीं चलता हो अपना वश तो मुँह खोला नहीं जाता / डी. एम. मिश्र
- ऐसी चली विकास की आंधी न पूछिए / डी. एम. मिश्र
- ढो रही सारे शहर की गंदगी मैं / डी. एम. मिश्र
- गर सलामत नहीं है ये पर्यावरण / डी. एम. मिश्र
- इतना बड़ा क़द आपका तो डर तो लगेगा / डी. एम. मिश्र
- डाकुओं से अधिक लीडरों से है डर / डी. एम. मिश्र
- बड़ा शोर है कुछ सुनाई न देता / डी. एम. मिश्र
- गाँव भी अब हो चुका सयाना है / डी. एम. मिश्र
- मुर्दों की यह बस्ती इसमें बसना क्या / डी. एम. मिश्र
- जो मज़ा ईमानदारी में कहाँ वो और है / डी. एम. मिश्र
- क़ातिलों के नगर में ज़िंदा हूँ / डी. एम. मिश्र
- इतना भी कम मत आँको वो नन्ही सी चिन्गारी है / डी. एम. मिश्र